Sunday 9 December 2012

The Door to Hell: A giant hole which has been on fire for more than 40 years

The Door to Hell is a natural gas field in Derweze (also spelled Darvaza, meaning "gate"), Ahal Province, Turkmenistan. The Door to Hell is noted for its natural gas firing which has been burning continuously since 1971, fed by the rich natural gas deposits in the area. The pungent smell of burning sulfur pervades the area for some distance.

 The field is situated near the Derweze village. It is in the middle of the Karakum Desert, about 260 kilometres (160 mi) north from Ashgabat. The gas reserve found here is one of the largest in the world. The name, "Door to Hell", was given to the field by the locals, referring to the fire, boiling mud and orange flames in Derweze's large crater of 70 metres (230 ft). The hot spots range over an area of 60 metres (200 ft) and to a depth of 20 metres (66 ft).

 The site was identified by Soviet scientists in 1971 It was thought to be a substantial oil field site. The scientists set up a drilling rig and camp near by, and started drilling operations to assess the quantity of gas reserve available at the site. As the Soviets were pleased with the success of finding the gas resources, they started storing the gas. The ground beneath the drilling rig and camp collapsed into a wide crater and disappeared. No lives were lost in the incident. However, large quantities of methane gas came out, creating huge environmental problems and causing immense harm to the people of the villages, which resulted in some deaths.
 Fearing the release of poisonous gases from the cavern, the scientists decided to burn it off. Environmentally, gas firing is the next best solution when the circumstances are such that it cannot be extracted for use. Methane gas released into the atmosphere is a dangerous greenhouse gas whose potential for global warming is high At that time, expectations were that the gas would burn within days, but it is still burning, decades after it was set on fire.

 










 

 

Tuesday 27 November 2012

रावण यहीं से बना रहा था स्वर्ग की सीढ़ी, आज भी ‘राक्षसों’ का कब्जा

PICS : रावण यहीं से बना रहा था स्वर्ग की सीढ़ी, आज भी ‘राक्षसों’ का कब्जा
दुनिया को स्वर्ग और नरक के अस्तित्व पर विश्वास हो न हो, पर आज से करीब 18 लाख साल पहले त्रेतायुग में लंकाधिपति रावण ने धरती से स्वर्ग तक सीढ़ी बनाने का काम शुरू किया था। अगर सीढ़ी बनाने में राक्षसराज कामयाब हो जाता तो फिर स्वर्ग जाने के लिए अच्छे कर्मों और पुण्य-प्रताप की जरूरत नहीं पड़ती। बहरहाल, हम बात कर रहे हैं उस जगह की जहां से सोने की लंका के मालिक रावण ने इस कार्य की शुरुआत की थी। भले ही यह कार्य बीच में ही रोक दिया गया हो, पर सीढ़ियां बनाने के लिए लगाए गए चट्टान आज भी उसकी गवाही दे रहे हैं।  

PICS : रावण यहीं से बना रहा था स्वर्ग की सीढ़ी, आज भी ‘राक्षसों’ का कब्जा
झारखंड के घाटशिला जिले में स्थित गालूडीह से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ियों और जंगलों से घिरा एक गांव है दुआरसीनी। झारखंड के नरसिंहपुर से महज तीन किमी की दूरी पर बंगाल के पुरूलिया जिले में स्थित दुआरसीनी जाने के लिए बीहड़ जंगल से गुजरना पड़ता है। 

 PICS : रावण यहीं से बना रहा था स्वर्ग की सीढ़ी, आज भी ‘राक्षसों’ का कब्जा
 पुराणों में भी दुआरसीनी का जिक्र है। माना जाता है कि त्रेता युग में रावण ने यहीं पर स्वर्ग जाने की सीढ़ी बनानी शुरू की थी। पहाड़ की ऊंची चोटी तक गई सीढ़ीनुमा चट्टानों को लोग उसी युग का बताते हैं। संभवत इसी कारण इसका नाम दुआरसीनी पड़ा।

 PICS : रावण यहीं से बना रहा था स्वर्ग की सीढ़ी, आज भी ‘राक्षसों’ का कब्जा
 कलकल बहती सातगुरूम नदी के एक ओर ये चट्टानें हैं, तो दूसरी ओर अति प्राचीन मां दुआर यानि दुर्गा मां का मंदिर है। मंदिर के सामने वन विभाग द्वारा चट्टानों की लंबी सीढ़ी बनवाई गई है, जो पहाड़ तक जाती हैं। वनवासी गांवों की ओर ले जाने वाली पहाड़ी नदी सातगुरूम का सौंदर्य देखने वालों को रिक्षाता है। 

PICS : रावण यहीं से बना रहा था स्वर्ग की सीढ़ी, आज भी ‘राक्षसों’ का कब्जा 
जंगलों में शाम के समय अचानक अंधेरे को उतरते देखना काफी दिलचस्प लगता है। जंगलों से घिरे इस क्षेत्र में आदिवासी गांवों से आती ढोल-नगाड़ों की लयबद्ध ध्वनियां चांदनी रात में मदहोश कर देने वाली होती हैं। मंदिर के सामने वन विभाग द्वारा चट्टानों की लंबी सीढ़ी बनवाई गई है, जो पहाड़ तक जाती हैं। वहां बच्चों के लिए आकर्षक चिड्रेन पार्क है।
 आस पास स्थित संथाल, मुंडा, शबरध, खेड़िया आदि जनजातियों के गांव आदिम जनजीवन का चित्र आंखों के सामने प्रस्तुत करते हैं। जंगल में भालू, जंगली सुअर, हाथियों, बिज्जू और भेड़िया के झुंड के साथ कुछ जाने-अनजाने पशु-पक्षियों को देखना आनंद से भर देता है। दुआरसीनी से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पह है भालो हिल्स । यहां प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के अवशेष देख सकते हैं

PICS : रावण यहीं से बना रहा था स्वर्ग की सीढ़ी, आज भी ‘राक्षसों’ का कब्जा 
प्राचीन महाकाव्यों और पुराणों में वर्णित यह धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व का स्थान एक विख्यात पर्यटक स्थल के रूप में भी लंबे समय तक प्रसिद्ध रहा। लेकिन, आज यहां कोई नहीं आता। वजह है आज के रावणों यानि नक्सलियों का कब्जा। आज दुआरसीनी पर्यटक स्थल नक्सलियों के अघोषित कब्जे में है।

PICS : रावण यहीं से बना रहा था स्वर्ग की सीढ़ी, आज भी ‘राक्षसों’ का कब्जा
रावण ने बताया था क्यों फेल हुआ प्रोजेक्ट : जब रावण राम के बाण से गिर गया तो राम स्वयं उसके पास शिक्षा लेने गए थे। इसी समय रावण ने टाइम मैनेजमेंट और पॉजीटिव थिंकिंग की शिक्षा देते हुए कहा था कि अच्छे काम को टालना नहीं चाहिए और बुरे काम को जितना हो सके टालना चाहिए। रावण ने स्वर्ग की सीढ़ी वाले प्रोजेक्ट के संदर्भ में राम से कहा था, “अच्छे कार्यों को कभी नहीं टालना चाहिए। हो सकता है कि टालने के कारण उन कार्यों को करने का कभी अवसर ही न आए। मैंने सोचा था कि नरक का मार्ग बंद करवा दूंगा, ताकि किसी को परलोक में दु:ख न भोगने पडे़। दूसरा काम समुद्र के खारे पानी को निकाल कर उसे दूध से भर देने का था। तीसरा काम धरती से स्वर्ग तक सीढ़ी बनाने का था, जिससे पापी-पुण्यात्मा सभी स्वर्ग तक पहुंच सकें।